महर्षि दयानंद सरस्वती (12 फरवरी 1824-30 अक्टूबर 1883) बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। 14 वर्ष की अल्प आयु में उन्होंने संपूर्ण यजुर्वेद कंठस्थ कर लिया था। बचपन में चाचा तथा बहन के निधन के समय होने वाली वेदना से उनके मन में मृत्यु की पीड़ा से छुटकारा पाने और मोक्षमार्ग का अवलंबन कर मृत्यु के कष्ट से अपनी रक्षा का उपाय करने का विचार। जब वह 14 वर्ष के थे, शिवरात्रि को 12 बजे शिव-पिंडी पर चढ़े हुए चावल चूहों द्वारा खाने की घटना से शिव शक्ति पर बालक मूलशंकर को आशंका हुई। सच्चे शिव की तलाश और योग बल से मुक्ति-लाभ प्राप्त करने हेतु 21 वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग दिया और संन्यास ग्रहण कर स्वामी दयानंद सरस्वती कहलाए। अनेक गुरुओं और योगियों से ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी उनकी जिज्ञासा शांत न हुई। अंत में स्वामी विरजानंद से उन्होंने व्याकरण आदि ग्रंथों का अध्ययन किया तथा गुरुदक्षिणा में वेद प्रचार का संकल्प लेकर कर्मक्षेत्र की ओर निकल पड़े। महर्षि ने सर्वप्रथम स्वराज्य, स्वदेशी, स्वभाषा, स्वभेष और स्वधर्म की प्रेरणा देशवासियों को दी। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नामक कालजयी पुस्तक की रचना की और उसमें लिखा कि जब परदेशी राज्य करे तो बिना दारिद्रय और दु:ख के दूसरा कुछ भी नहीं हो सकता। एक बार कलकत्ता के वायसराय ने स्वामी दयानंद को वार्तालाप के लिए बुलाकर उनके समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि वे अपनी प्रार्थना और सम्मेलनों में अखंड ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के लिए प्रार्थना किया करे। महर्षि ने दो टूक उत्तर दिया, ''इसके लिए प्रार्थना करना तो दूर, मैं सदा भारत की स्वतंत्रता और ब्रिटिश राज्य की समाप्ति के लिए ही प्रार्थना करता हूं और करता रहूंगा।'' मातृभाषा गुजराती व संस्कृत के उद्भट विद्वान होते हुए भी राष्ट्रभाषा प्रेम के कारण उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका, संस्कार-विधि, आर्याभिविनय आदि अनेक ग्रंथों की रचना हिंदी में की तथा वेदों का सर्वप्रथम सरल हिंदी भाष्य किया। शिक्षा पर सभी का अधिकार मानते हुए अनेक शिक्षण संस्थाएं और आर्ष पद्धति के गुरुकुल स्थापित किए। गोरक्षा आंदोलन में उनकी विशेष भूमिका रही। महर्षि ने अप्रैल 1875 में आर्यसमाज की स्थापना की, जिसके सदस्यों की स्वतंत्रता संग्राम में विशेष भूमिका रही।
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साभार -
http://www.maharishidayanand.com/
dhanyavad..
जवाब देंहटाएंkripya unki baki k granthon ko bhi uplabdh karayein...